इस अध्याय में वैदिक महावाक्य, महावाक्य, सोऽहं, सोऽहं हंस, सोऽहं हंस:, अहम् ब्रह्मास्मि, तत् त्वम् असि, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म, सत्यम् ज्ञानम् अनंतम् ब्रह्म, सर्वं खल्विदं ब्रह्म, यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे, यद् ब्रह्माण्डे तद् पिण्डे, स्व:वाणी आदि पर बात होगी I
यहाँ बताया गया साक्षात्कार, 2011 ईस्वी से लेकर 2012 ईस्वी तक का है I
यह अध्याय भी आत्मपथ, ब्रह्मपथ या ब्रह्मत्व पथ श्रृंखला का अंग है, जो पूर्व के अध्याय से चली आ रही है ।
यह भाग मैं अपनी गुरु परंपरा, जो इस पूरे ब्रह्मकल्प में, आम्नाय सिद्धांत से ही सम्बंधित रही है, उसके सहित, वेद चतुष्टय से जो भी जुड़ा हुआ है, चाहे वो किसी भी लोक में हो, उस सब को और उन सब को समर्पित करता हूं।
यह ग्रंथ मैं पितामह ब्रह्म को स्मरण करके ही लिख रहा हूं, जो मेरे और हर योगी के परमगुरु कहलाते हैं, जिनको वेदों में प्रजापति कहा गया है, जिनकी अभिव्यक्ति हिरण्यगर्भ ब्रह्म कहलाती है, जो अपने कार्य ब्रह्म स्वरूप में योगिराज, योगऋषि, योगसम्राट, योगगुरु, योगेश्वर और महेश्वर भी कहलाते हैं, जो योग और योग तंत्र भी होते हैं, जो योगी के ब्रह्मरंध्र विज्ञानमय कोश में उनके अपने पिण्डात्मक स्वरूप में बसे होते हैं और ऐसी दशा में वह उकार भी कहलाते हैं, जो योगी की काया के भीतर अपने हिरण्यगर्भात्मक लिंग चतुष्टय स्वरूप में होते हैं, जो योगी के ब्रह्मरंध्र के भीतर जो तीन छोटे छोटे चक्र होते हैं उनमें से मध्य के बत्तीस दल कमल में उनके अपने ही हिरण्यगर्भात्मक (स्वर्णिम) सगुण आत्मब्रह्म स्वरूप में होते हैं, जो जीव जगत के रचैता ब्रह्मा कहलाते हैं और जिनको महाब्रह्म भी कहा गया है, जिनको जानके योगी ब्रह्मत्व को पाता है, और जिनको जानने का मार्ग, देवत्व, जीवत्व और जगतत्व से होता हुआ, बुद्धत्व से भी होकर जाता है।
यह अध्याय “स्वयं ही स्वयं में” के वाक्य की श्रंखला का छियासीवाँ अध्याय है, इसलिए जिसने इससे पूर्व के अध्याय नहीं जाने हैं, वो उनको जानके ही इस अध्याय में आए, नहीं तो इसका कोई लाभ नहीं होगा ।
यह अध्याय, इस भारत भारती मार्ग सहित इस ग्रंथ में बताए गए समस्त मार्गों का गंतव्य भी है I
वैदिक महावाक्य क्या है, महावाक्य क्या है, सोऽहं का अर्थ, सोऽहं हंस का अर्थ, सोऽहं हंस: का अर्थ, अहम् ब्रह्मास्मि का अर्थ, तत् त्वम् असि का अर्थ, अयमात्मा ब्रह्म का अर्थ, प्रज्ञानं ब्रह्म का अर्थ, सत्यम् ज्ञानम् अनंतम् ब्रह्म का अर्थ, सर्वं खल्विदं ब्रह्म, सर्वं खल्विदं ब्रह्म का अर्थ, यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे का अर्थ, यद् ब्रह्माण्डे तद् पिण्डे का अर्थ,…
यह भाग कुछ ही बिन्दुओं में, कुछ सूक्ष्म-सांकेतिक और कुछ स्पष्ट रूप में बताया जाएगा…
जो मूल में सर्वमूल, और मूल का ही अमूल स्वरूप है I
जो गंतव्य में गंतव्य, और गंतव्य का ही सर्वातीत स्वरूप है I
जो शून्य में शून्य, सर्वस्व में सर्वस्व, और अनंत में अनंत स्वरूप है I
वही तुम हो, मैं हूँ, जीव जगत है, आत्मा है, अज है, स्व है, स्व:प्रकाश ब्रह्म है,
वही सोऽहं, अहम् ब्रह्मास्मि, तत् त्वम् असि, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म से दर्शाया है,
वही सत्यम् ज्ञानम् अनंतम्, सर्वं खल्विदं, यद् पिण्डे तद ब्रह्माण्डे आदि ने दर्शाया है I
जो गंध में गंध, रस में रस, रूप में रूप, स्पर्श में स्पर्श, शब्द में शब्द है I
सर्ग में सर्ग, स्थिति में स्थिति, संहार में संहार, निग्रह में निग्रह, अनुग्रह में अनुग्रह है I
जो ब्रह्मा में ब्रह्मा, विष्णु में विष्णु, रुद्र में रुद्र, देवी में देवी, गणेश में गणेश है I
वही तुम हो, मैं हूँ, जीव जगत है, आत्मा है, अज है, स्व है, वही स्व:प्रकाश ब्रह्म है,
वही सोऽहं, अहम् ब्रह्मास्मि, तत् त्वम् असि, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म से दर्शाया है,
वही सत्यम् ज्ञानम् अनंतम्, सर्वं खल्विदं, यद् पिण्डे तद ब्रह्माण्डे आदि ने दर्शाया है I
अन्न में अन्न, ऊर्जा में ऊर्जा, पिंण्ड में पिंण्ड, ब्रह्माण्ड में ब्रह्माण्ड है,
जो बुद्धि में बुद्धि, अहम् में अहम्, चित्त में चित्त, मन में मन, प्राण में प्राण है,
जो कर्म में अकर्मा, फल में अफलित, संस्कार में संस्कारातीत, साधनाओं में साक्षी है,
वही तुम हो, मैं हूँ, जीव जगत है, आत्मा है, अज है, स्व है, वही स्व:प्रकाश ब्रह्म है,
वही सोऽहं, अहम् ब्रह्मास्मि, तत् त्वम् असि, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म से दर्शाया है,
वही सत्यम् ज्ञानम् अनंतम्, सर्वं खल्विदं, यद् पिण्डे तद ब्रह्माण्डे आदि ने दर्शाया है I
जो स्थूल में स्थूल, सूक्ष्म में सूक्ष्म, कारण में कारण, महाकारण में महाकारण है,
जो पृथ्वी में पृथ्वी, जल में जल, तेज में तेज, वायु में वायु, आकाश में आकाश है,
जो अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनंदमयादि स्वरूप में अभिव्यक्त है,
वही तुम हो, मैं हूँ, जीव जगत है, आत्मा है, अज है, स्व है, वही स्व:प्रकाश ब्रह्म है,
वही सोऽहं, अहम् ब्रह्मास्मि, तत् त्वम् असि, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म से दर्शाया है,
वही सत्यम् ज्ञानम् अनंतम्, सर्वं खल्विदं, यद् पिण्डे तद ब्रह्माण्डे आदि ने दर्शाया है I
जो सर्वातीत होता हुआ भी, सर्वस्व में और सर्वरूप में अभिव्यक्त है,
जो पिण्ड से अतीत, ब्रह्माण्ड से अतीत होता हुआ भी जीव जगत हुआ है,
जो निर्गुण निराकार होता हुआ भी, सगुण निराकार और सगुण साकार हुआ है,
वही तुम हो, मैं हूँ, जीव जगत है, आत्मा है, अज है, स्व है, वही स्व:प्रकाश ब्रह्म है,
वही सोऽहं, अहम् ब्रह्मास्मि, तत् त्वम् असि, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म से दर्शाया है,
वही सत्यम् ज्ञानम् अनंतम्, सर्वं खल्विदं, यद् पिण्डे तद ब्रह्माण्डे आदि ने दर्शाया है I
जो निर्बीज, निर्विकल्प, संप्रज्ञात, असंप्रज्ञात आदि समधियों में साक्षी है,
जो निरंग होता हुआ भी सर्वरंग हुआ है, सर्वसाक्षी होता हुआ सर्व हुआ है,
जो सब में, सब उसमें, जो योग के भीतर अयोग, अनात्मा के भीतर आत्मा है,
वही तुम हो, मैं हूँ, जीव जगत है, आत्मा है, अज है, स्व है, वही स्व:प्रकाश ब्रह्म है,
वही सोऽहं, अहम् ब्रह्मास्मि, तत् त्वम् असि, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म से दर्शाया है,
वही सत्यम् ज्ञानम् अनंतम्, सर्वं खल्विदं, यद् पिण्डे तद ब्रह्माण्डे आदि ने दर्शाया है I
जो भूतातीत होता हुआ भी, महाभूत हुआ है,
जो तन्मात्रातीत होता हुआ भी, तन्मात्र रूप में आया है,
जो त्रिगुणातीत होता हुआ भी, त्रिगुण रूप में अभिव्यक्त है,
जो पिण्डातीत होता हुआ भी, समस्त पिण्ड रूपों में अभिव्यक्त है,
जो ब्रह्माण्डातीत होता हुआ भी, ब्रह्माण्ड के स्वरूप में अभिव्यक्त है,
वही तुम हो, मैं हूँ, जीव जगत है, आत्मा है, अज है, स्व है, स्व:प्रकाश ब्रह्म है,
वही सोऽहं, अहम् ब्रह्मास्मि, तत् त्वम् असि, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म से दर्शाया है,
वही सत्यम् ज्ञानम् अनंतम्, सर्वं खल्विदं, यद् पिण्डे तद ब्रह्माण्डे आदि ने दर्शाया है I
जो मनातीत होता हुआ भी, मन रूप में अभिव्यक्त है,
जो चित्तातीत होता हुआ भी, चित्त रूप में अभिव्यक्त है,
जो बुद्धितीत होता हुआ भी, बुद्धि रूप में अभिव्यक्त है,
जो अहमातीत होता हुआ भी, अहंकार रूप में अभिव्यक्त है,
जो प्राणातीत होता हुआ भी, प्राण स्वरूप में अभिव्यक्त हुआ है,
वही तुम हो, मैं हूँ, जीव जगत है, आत्मा है, अज है, स्व है, स्व:प्रकाश ब्रह्म है,
वही सोऽहं, अहम् ब्रह्मास्मि, तत् त्वम् असि, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म से दर्शाया है,
वही सत्यम् ज्ञानम् अनंतम्, सर्वं खल्विदं, यद् पिण्डे तद ब्रह्माण्डे आदि ने दर्शाया है I
जिसकी अभिव्यक्ति से, जीवों में गोत्र प्रकाशित होते हैं,
जिसकी अभिव्यक्ति से, पिण्डों में आश्रम प्रकाशित हुआ है,
जिसकी अभिव्यक्ति से, प्रकृति में, वर्णाश्रम भी प्रकाशित होता है,
जो इन में प्रतीत होता हुआ भी, वर्णातीत, गोत्रातित और आश्रमातीत है,
वही तुम हो, मैं हूँ, जीव जगत है, आत्मा है, अज है, स्व है, स्व:प्रकाश ब्रह्म है,
वही सोऽहं, अहम् ब्रह्मास्मि, तत् त्वम् असि, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म से दर्शाया है,
वही सत्यम् ज्ञानम् अनंतम्, सर्वं खल्विदं, यद् पिण्डे तद ब्रह्माण्डे आदि ने दर्शाया है I
जो समस्त कर्मों में होता हुआ भी, कर्मातीत है,
जो समस्त फलों में होता हुआ भी, फलातीत ही है,
जो समस्त संस्कारों में होता हुआ भी, संस्कारातीत है,
वही तुम हो, मैं हूँ, जीव जगत है, आत्मा है, अज है, स्व है, स्व:प्रकाश ब्रह्म है,
वही सोऽहं, अहम् ब्रह्मास्मि, तत् त्वम् असि, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म से दर्शाया है,
वही सत्यम् ज्ञानम् अनंतम्, सर्वं खल्विदं, यद् पिण्डे तद ब्रह्माण्डे आदि ने दर्शाया है I
जो समस्त तंत्रों में होता हुआ भी, तंत्रातीत है,
जो समस्त योगपथ में होता हुआ भी, योगातीत ही है,
जो समस्त प्रशस्त ग्रंथों में होता हुआ भी ग्रंथातीत रहा है,
जो समस्त उत्कर्ष मार्ग में होता हुआ भी, मार्गातीत ही रहा है,
जो समस्त सिद्धांत आदि में होता हुआ भी सिद्धांतातीत ही रहा है,
जिसको उत्कृष्टम योगीजनों, वैदिक मनीषियों ने महावाक्यों में दर्शाया है,
वही तुम हो, मैं हूँ, जीव जगत है, आत्मा है, अज है, स्व है, स्व:प्रकाश ब्रह्म है,
वही सोऽहं, अहम् ब्रह्मास्मि, तत् त्वम् असि, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म से दर्शाया है,
वही सत्यम् ज्ञानम् अनंतम्, सर्वं खल्विदं, यद् पिण्डे तद ब्रह्माण्डे आदि ने दर्शाया है I
जो दिशातीत, दशातीत, कालातीत है,
जो भूतात्मा, तन्मात्रात्मा, गुणात्मा ही है,
जो अवस्थातीत, लोकातीत, समाधितीत आत्मा है,
जो ज्ञानात्मा, चिदात्मा, अहमात्मा, मनात्मा, प्राणात्मा है,
जो भावातीत, इच्छातीत, गुणातीत, जगतातीत, जीवातीत, सर्वातीत है,
वही तुम हो, मैं हूँ, जीव जगत है, आत्मा है, अज है, स्व है, स्व:प्रकाश ब्रह्म है,
वही सोऽहं, अहम् ब्रह्मास्मि, तत् त्वम् असि, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म से दर्शाया है,
वही सत्यम् ज्ञानम् अनंतम्, सर्वं खल्विदं, यद् पिण्डे तद ब्रह्माण्डे आदि ने दर्शाया है I
जो भूतमुक्त, दशमुक्त, दिशामुक्त, तन्मात्रमुक्त है,
जो दोषमुक्त, भावमुक्त, इच्छामुक्त, गुणमुक्त, कालमुक्त है,
जो रचना, रचना का मूल और गंतव्य होता हुआ भी, रचना से मुक्त है,
वही तुम हो, मैं हूँ, जीव जगत है, आत्मा है, अज है, स्व है, स्व:प्रकाश ब्रह्म है,
वही सोऽहं, अहम् ब्रह्मास्मि, तत् त्वम् असि, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म से दर्शाया है,
वही सत्यम् ज्ञानम् अनंतम्, सर्वं खल्विदं, यद् पिण्डे तद ब्रह्माण्डे आदि ने दर्शाया है I
जो समस्त रचना, रचना का तंत्र होता हुआ भी, रचनातीत है,
जो रचना में पूर्ण रूप में और रचना भी उसमें पूर्णरूपेण बसी है,
जो रचना के भागों में और जिसमें रचना के भाग समानरूपेण बसे हैं,
जिसको रुद्र के समान, स्व:मार्गी होकर, ‘स्वयं ही स्वयं में’ जाना जाता है,
वही तुम हो, मैं हूँ, जीव जगत है, आत्मा है, अज है, स्व है, स्व:प्रकाश ब्रह्म है,
वही सोऽहं, अहम् ब्रह्मास्मि, तत् त्वम् असि, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म से दर्शाया है,
वही सत्यम् ज्ञानम् अनंतम्, सर्वं खल्विदं, यद् पिण्डे तद ब्रह्माण्डे आदि ने दर्शाया है I
आगे बढ़ता हूँ…
ब्रह्मत्व स्थित योगी की स्व:वाणी, योग ब्रह्मत्व, ब्रह्मत्व स्थित योगी, आत्मा वाणी, आत्मवाणी, ब्रह्म वाणी, ब्रह्मवाणी, योग शिखर की स्व:वाणी, ब्रह्मत्व पथ की वाणी, ब्रह्मत्व को जाता हुआ योगमार्ग, योग गंतव्य में योगी की दशा, योग गंतव्य मार्ग, …
ऐसा योगी अपनी वास्तविकता में जैसा होगा, वही इस स्व:वाणी में बताया गया है I
ऐसे योगी का ब्रह्मत्व पथ जैसा होगा, उसे ही इस वाणी में बताया गया है I
ब्रह्मत्व स्थित योगी के लिए, वह ब्रह्मत्व पथ ही ब्रह्मत्व और ब्रह्मत्व ही उसके निष्कलंक पथ रूप में होगा I
टिप्पणियाँ:
- एक सार्वभौम व्यापक बिंदु है…
सबकुछ उसी ब्रह्म की अभिव्यक्ति, ब्रह्म ही है I
अभिव्यक्ता ब्रह्म ही अपनी अभिव्यक्ति रूपी ब्रह्मरचना है I
- ऐसा होने पर भी…
अभिव्यक्ति के दृष्टिकोण से वह अभिव्यक्ता नहीं होती I
और अभिव्यक्ता के दृष्टिकोण से वह अभिव्यक्ति ही होता है I
- इन्ही बिन्दुओं को इस भाग में कुछ स्पष्ट और कुछ सांकेतिक रूप में दर्शाया गया है I
- इसलिए इस भाग में जाने से पूर्व, पाठकगण इन टिप्पणियाँ पर विशेष ध्यान दें I
इस वाणी में जो मैं शब्द के प्रयोग किया गया है, वो कोई स्थूल, सूक्ष्म या करण शरीर नहीं है।
यह मैं शब्द केवल और केवल आत्मा को दर्शाता है, जो मेरा, आपका और सबका विशालकाय, अनंतरूप, एकआत्मा, अद्वैतात्मा और सर्वात्मा ब्रह्म ही है।
ना अन्नमय हूँ ना प्राणमय हूँ, ना मनोमय विज्ञानमय हूँ,
ना मन हूँ ना बुद्धि हूँ, ना चित्त अहंकार हूँ,
ना भू हूँ ना जल हूँ, ना तेज हूँ ना वायु हूँ,
आकाश के सामान व्याप्त हूँ, मैं ही तो महाकाश हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
ना जीव हूँ ना आजीव हूँ, ना ही मैं निर्जीव हूँ,
ना मानव हूँ ना दानव हूँ, ना देव हूँ ना दैत्य हूँ,
ना चर हूँ ना अचर हूँ, ना ही मैं प्राणी हूँ,
सच्चिदानंद सर्वेश्वर हूँ, मैं ही तो सत्त हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
ना सूक्ष्म हूँ ना स्थूल हूँ, नाहीं इनके मध्य में हूँ,
ना अपरा हूँ ना परा हूँ, नाहीं मैं अव्यक्त हूँ,
ना रज हूँ ना तम हूँ, नाहीं मैं सत्त्व हूँ,
ना प्राकृत हूँ ना अप्राकृत हूँ, मैं ही तो ब्रह्म हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
ना पिंड हूँ ना ब्रह्मांड हूँ, मैं तो इनका अभिव्यक्ता हूँ,
ना ज्ञानी हूँ ना ज्ञाता हूँ, मैं स्वयं ही तो ज्ञान हूँ,
ना चित्त हूँ, ना चित हूँ, न ही मैं चित् या चित्ती हूँ,
मैं स्वतंत्र हूँ मैं सर्वचेतन हूँ, मैं ही तो चिदाकाश हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
ना धर्म हूँ ना अर्थ हूँ, ना काम हूँ ना मोक्ष हूँ,
ना दृष्टा हूँ ना दृष्टि हूँ, ना दृश्य हूँ ना अदृश्य हूँ,
ना अनात्म हूँ ना प्रपंच हूँ, मैं तो केवल आत्म हूँ,
सच्चिदानंद सर्वेश्वर हूँ, शिव हूँ शिव हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
ना कर्म हूँ ना अकर्म हूँ, नाही मैं विकर्मा हूँ,
ना फल हूँ ना अफल हूँ, नाही मैं विफल हूँ,
ना कर्ता हूँ ना भोक्ता हूँ, नाही इनके संस्कार में हूँ,
मैं सच्चिदानंद सर्वेश्वर हूँ, शिव हूँ शिव हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
ना अभिमानी हूँ ना अनाभिमानी हूँ, ना ही मैं अहंकारी हूँ,
ना कर्ता हूँ ना अकर्ता हूँ, नाही मैं विकर्मि हूँ,
ना भोगता हूँ ना अभोगता हूँ, मैं तो इनसे परा हूँ,
मैं सर्वव्यापी आत्मा हूँ, मैं ही तो ब्रह्म हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
ना सद्गुण हूँ ना अवगुण हूँ, मैं तो गुणातीत हूँ,
ना अर्थ हूँ ना अनर्थ हूँ, मैं ही तो परमार्थ हूँ,
ना साकार हूँ ना असाकार हूँ, मैं अनंत निराकार हूँ,
सच्चिदानंद सर्वेश्वर हूँ, मैं ही हूँ मैं ही हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
ना वर्ण हूँ ना गोत्र हूँ, ना कुल ना परंपरा हूँ,
ना देही हूँ ना विदेही हूँ, मैं इनसे परा हूँ,
ना सिद्धि हूँ ना रिद्धि हूँ, नाहि ही मैं सिद्ध हूँ,
सच्चिदानंद सर्वेश्वर हूँ, मैं आत्म हूँ मैं ब्रह्म हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
ना हस्त हूँ ना पाद हूँ, ना मुख लिंग या गुदा हूँ,
ना श्रोत्र हूँ ना तवचा हूँ, ना जिह्वा नासिका या नेत्र हूँ,
ना शब्द हूँ ना स्पर्श हूँ, ना रस गंध या रूप हूँ,
ना बहिरीन्द्रि हूँ, ना अतीन्द्री हूँ, मैं सच्चिदानंद सर्वेश्वर हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
ना वेद हूँ ना पुराण हूँ, नाहि ही कोई ग्रंथ हूँ,
ना बंधन हूँ ना मुक्ति हूँ, नाहि इनके मध्य में हूँ,
मैं ज्ञान हूँ, परमार्थ हूँ, मैं महावाक्यों का सार हूँ,
मैं पूर्ण में हूँ, पूर्ण मुझमे हैं, मैं स्वयं ही परिपूर्णहूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
ना भोजन हूँ ना भोज्य हूँ, नाहि मैं भोक्ता हूँ,
ना पुण्य हूँ ना पाप हूँ, ना सुख हूँ ना दुख हूँ,
ना दिशा हूँ, ना दशा हूँ, मैं काल और आकाश हूँ,
मैं शिव हूँ मैं शक्ति हूँ, मैं ही तो सर्वेश्वर हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
ना गुरु हूँ ना शिष्य हूँ, ना जनक नाहि जन्मा हूँ,
ना पिता हूँ ना माता हूँ, ना पुत्र नाहि पुत्री हूँ,
ना दाता हूँ ना याचक हूँ, ना अनुलोम या विलोम हूँ,
मैं सर्वव्याप्त हूँ, आत्म हूँ, मैं ही तो ब्रह्म हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
ना अंक हूँ ना शून्य हूँ, मैं सर्वव्याप्त अनंत हूँ,
ना जागृत हूँ ना सुसुप्त हूँ, ना ही मैं स्वपन में हूँ,
मैं तुरिया से भी अतीत हूँ, मैं ही तो तुरियातीत हूँ,
मैं अद्वैत हूँ मैं आत्मा हूँ, मैं ही तो ब्रह्म हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
मैं निरपाय हूँ निराबाध हूँ, मैं ही निरङ्ग हूँ,
मैं निर्भाव हूँ निर्भिलाशा हूँ, मैं ही तो निरभिमान हूँ,
मैं निरादान हूँ निराधार हूँ, मैं निरधिष्ठान हूँ,
मैं निराधि हूँ निरागम हूँ, मैं ही तो निराग हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
मैं निरागस् हूँ, मैं निरहम् हूँ, मैं ही तो निर्धाम हूँ,
मैं निरिङ्ग हूँ निरनुयोज्य हूँ, मैं ही तो निर्विचार हूँ,
मैं निरंतर हूँ निरामिष हूँ, मैं ही तो निरमित्र हूँ,
मैं निर्भूत हूँ निरतन्मात्र हूँ, मैं ही तो निरपुर हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
मैं निरवरोध हूँ, मैं निरव्यय हूँ, मैं ही तो निर्बाध्य हूँ,
मैं निरीतिक हूँ, मैं निर्जर हूँ, मैं ही तो निर्मल हूँ,
मैं निर्भय हूँ निर्विशेष हूँ, मैं ही तो निर्बन्धु हूँ,
मैं निरुपाधि हूँ निर्बीज हूँ, मैं ही तो निर्विकल्प हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
मैं आदि हूँ, अनादि हूँ, मैं ही तो सर्वदा और सनातन हूँ,
मैं भूमि हूँ मैं भूधर हूँ, मैं ही तो भूमा और भुमत्व हूँ,
मैं अणु हूँ विराट हूँ, मैं ही तो विश्वरूप में हूँ,
मैं निर्मन्तु हूँ निर्विकार हूँ, मैं ही तो निर्वाणधातु हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
मैं सूर्य विष्णु रुद्र हूँ, मैं देवी और गणेश हूँ,
सब मुझमे हैं मैं सबमें हूँ, मैं ही तो पंच आराध्या में हूँ,
मैं उत्पत्ती स्थिति संहार हूँ, मैं निग्रह और अनुग्रह हूँ,
सब मुझमें हैं मैं सबमें हूँ, मैं ही तो पंच कृत्य में हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
सब मेरी अभिव्यक्ति है, मैं ही तो अभिव्यक्ता हूँ,
मैं रचना हूँ रचैता हूँ, मैं ही तो रचना का तंत्र हूँ,
मूल में मैं सर्वत्र में मैं, मैं ही तो गंतव्य में हूँ,
ना असत्य हूँ, ना द्वैत हूँ, मैं ही तो निष्कलंक अद्वैत हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
सब मेरी अभिव्यक्ति है, मैं सब का अभिव्यक्ता हूँ,
मैं सगुण हूँ साकार हूँ, मैं ही तो सगुण निराकार हूँ,
मैं सर्वत्र हूँ, सर्वव्याप्त हूँ, मैं ही तो पूर्णा हूँ,
मैं प्रकाश और अंधाकार में हूँ, मैं ही तो स्व प्रकाश हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
मूल में मैं योग हूँ, गंतव्य में मैं ज्ञानहूँ,
मैं मुक्ति का मार्ग हूँ, मैं स्वयं ही तो निर्वाण हूँ,
मैं अकार हूँ, उकार हूँ, मैं ही तो मकार हूँ,
मैं शुद्ध चेतन तत्व हूँ, मैं ही तो ओंकार हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
मैं परम हूँ, मैं परमक हूँ, मैं ही तो परमपद हूँ,
मैं परमपुंस हूँ, परमता हूँ, मैं ही तो परमार्थ हूँ,
मैं परमेष्ठ हूँ, परमाद्वैत हूँ, मैं ही तो परमानन्द हूँ,
मैं परमज्या हूँ, मैं परमतत्त्व हूँ, मैं ही तो परमात्म हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
मूल मैं मैं, गंतव्य में मैं, सर्वत्र में भी मैं ही हूँ,
मैं आत्मा हूँ, मैं ब्रह्म हूँ, मैं ही तो परमेश्वर: हूँ,
मैं निर्विकल्प हूँ निरालंब हूँ, मैं ही तो निराधार हूँ,
मैं स्वतंत्र हूँ कैवल्य हूँ, मैं ही तो मुक्ति निर्वाण हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ,
मैं निर्गुण हूँ निरंजन हूँ, मैं ही तो निराकार हूँ।
मैं ही तो निर्गुण निराकार हूँ।
जो भी मनीषी इस स्व: वाणी (आत्मवाणी) को प्रतिदिन सुनेगा और इसके भाव और तत्त्व को अपने भीतर धारण करेगा, वह स्वयं ही स्वयं को चला जाएगा, अर्थात वह आत्मा ही आत्मा में चला जाएगा… “आत्मा ही आत्मा में”, यही मार्ग है इसका I ऐसे मनीषी के लिए इस पञ्च भूत के शरीर का कोई महत्त्व नहीं रह जाता है, क्यूंकि वह जानता है कि यह मिथ्या है I
और यदि मैं इस मार्ग की अंतदशा का वर्णन करूँ, तो कह सकता हूँ, ब्रह्म ही ब्रह्म में I सारे महावाक्यों का सार और गंतव्य, यह स्व:वाणी (आत्मा वाणी) ही है I
यह मेरा मार्ग था, जिसको मैंने यहाँ पर बता दिया… तू भी इसी पर जा, क्यूंकि तू ही है… तत्त्वमसि… ऐसा जान I
और अंत में…
तो यहाँ पर मेरी वह गुरुदक्षिणा जो इस परकाया प्रवेश से प्राप्त हुए जन्म के मूल में थी, और जिसके कारण इस ग्रंथ में बताए गए मार्ग पर जाना पड़ा और इस ग्रंथ को प्रकाशित भी करना पड़ गया था, वह अब पूर्ण हुई I
और यहाँ पर ही मेरे समस्त पूर्व जन्मों की अन्य गुरुदक्षिणाएँ और देव अथवा गुरु आदि के आदेश के अनुसार जो करना शेष रह गया था, वह भी पूर्ण हुआ I
इसलिए अब यह ग्रंथ समाप्त होता है I
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः I
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् II
लिंक:
ब्रह्मकल्प, Brahma Kalpa, Kalpa of Brahma, Kalpa
परंपरा, Parampara
ब्रह्म, Brahman
त्रिगुण, Triguna