महाकाल महाकाली योग, महाकाली महाकाल योग, महाकालेश्वर, महाकालेश्वर महादेव, माँ महाकाली, काली काल योग, माँ काली, जीव जगत कालगर्भित है, काल ही गर्भ है, महाकाल सिद्धि, महाकाली सिद्धि, तंत्र का शिखर, योगतंत्र का शिखर, सनातन ब्रह्म, शून्य अनंत स्वरूप स्थिति, अनंत शून्य स्वरूप स्थिति

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यहाँ पर महाकाल महाकाली योग, महाकाली महाकाल योग, महाकालेश्वर, महाकालेश्वर महादेव, माँ महाकाली, काली काल योग, माँ काली, जीव जगत कालगर्भित है, काल ही गर्भ है, महाकाल सिद्धि, महाकाली सिद्धि, तंत्र का शिखर, योगतंत्र का शिखर, सनातन ब्रह्म, शून्य अनंत स्वरूप स्थिति, अनंत शून्य स्वरूप स्थिति आदि पर बात होगी I

यहाँ बताया गया साक्षात्कार, 2011 ईस्वी से लेकर 2012 ईस्वी तक का है I

यह अध्याय भी आत्मपथ, ब्रह्मपथ या ब्रह्मत्व पथ श्रृंखला का अंग है, जो पूर्व के अध्याय से चली आ रही है ।

यह भाग मैं अपनी गुरु परंपरा, जो इस पूरे ब्रह्मकल्प में, आम्नाय सिद्धांत से ही सम्बंधित रही है, उसके सहित, वेद चतुष्टय से जो भी जुड़ा हुआ है, चाहे वो किसी भी लोक में हो, उस सब को और उन सब को समर्पित करता हूं।

यह ग्रंथ मैं पितामह ब्रह्म को स्मरण करके ही लिख रहा हूं, जो मेरे और हर योगी के परमगुरु कहलाते हैं, जिनको वेदों में प्रजापति कहा गया है, जिनकी अभिव्यक्ति हिरण्यगर्भ ब्रह्म कहलाती है, जो अपने कार्य ब्रह्म स्वरूप में योगिराज, योगऋषि, योगसम्राट, योगगुरु, योगेश्वर और महेश्वर भी कहलाते हैं, जो योग और योग तंत्र भी होते हैं, जो योगी के ब्रह्मरंध्र विज्ञानमय कोश में उनके अपने पिण्डात्मक स्वरूप में बसे होते हैं और ऐसी दशा में वह उकार भी कहलाते हैं, जो योगी की काया के भीतर अपने हिरण्यगर्भात्मक लिंग चतुष्टय स्वरूप में होते हैं, जो योगी के ब्रह्मरंध्र के भीतर जो तीन छोटे छोटे चक्र होते हैं उनमें से मध्य के बत्तीस दल कमल में उनके अपने ही हिरण्यगर्भात्मक (स्वर्णिम) सगुण आत्मब्रह्म स्वरूप में होते हैं, जो जीव जगत के रचैता ब्रह्मा कहलाते हैं और जिनको महाब्रह्म भी कहा गया है, जिनको जानके योगी ब्रह्मत्व को पाता है, और जिनको जानने का मार्ग, देवत्व, जीवत्व और जगतत्व से होता हुआ, बुद्धत्व से भी होकर जाता है।

यह अध्याय, “स्वयं ही स्वयं में” के वाक्य की श्रंखला का सत्तरवाँ अध्याय है, इसलिए जिसने इससे पूर्व के अध्याय नहीं जाने हैं, वो उनको जानके ही इस अध्याय में आए, नहीं तो इसका कोई लाभ नहीं होगा ।

यह अध्याय, इस भारत भारती मार्ग का छठा अध्याय है I

 

महाकाल महाकाली योग, महाकालेश्वर, महाकालेश्वर महादेव, माँ महाकाली, माँ काली
महाकाल महाकाली योग, महाकालेश्वर, महाकालेश्वर महादेव, माँ महाकाली, माँ काली

 

इस चित्र का वर्णन I

इस चित्र में…

  • महाकाली महाकाल योग दिखाया गया है I
  • काला भाग काल का है जो अपनी गंतव्य, सनातन दशा में है और इसी दशा में वह महाकाल कहलाता है I

टिपण्णी: वैदिक वाङ्मय में जब महा शब्द कहा जाता है, तो वह सर्वोच्च (शिखर या गंतव्य) को दर्शाता है I ऐसा इसलिए है क्यूंकि एक ही जीव जगत में, दो महा कभी नहीं होते I इसलिए यहाँ कहा गया महाकाल का शब्द, काल के गंतव्य, अनादि अनंत सनातन स्वरूप का द्योतक है I

  • चांदी के बिंदु, उन प्रकृति के द्योतक है जो काल की शक्ति महाकाली है और जहाँ महाकाली जागृत दशा में हैं I
  • जागृत हुई महाकाली, काल के भीतर बसी हुई है और उसी काल के सनातन स्वरूप से योग करके, काल के ही चक्र स्वरूप की शक्ति हैं I
  • इस चित्र का नाता, न्यून अंश में ही सही, लेकिन कालास्त्र से भी है I कालास्त्र देवी का ही अस्त्र है जिसको देवी ने अब तक किसी को भी बांटा नहीं है I इसलिए कालास्त्र सदैव से ही देवी के आधीन रहा है I
  • इस चित्र में दिखाई गई दशा का साक्षात्कार, आज्ञा चक्र से थोड़ा सा ऊपर की ओर होता है I
  • इस चित्र का नाता उस दशा से भी है जिसमें जड़ और असंप्रज्ञात समाधि का योग होता है I
  • इस चित्र का नाता शक्ति शिव योग और योग अश्वमेध से भी है जिसके बारे में पूर्व के अध्याय में बताया जा चुका है I

 

आगे बढ़ता हूँ…

जीव जगत कालगर्भित है, काल ही गर्भ है, कल का गर्भ स्वरूप, काल ही जीव जगत का गर्भ है, तंत्र का शिखर, योग तंत्र का शिखर, … काल ही हिरण्यगर्भ का मार्ग है, काल का उदय, काल और हिरण्यगर्भ, काल और कालचक्र, काल और सनातन, सनातन ब्रह्म और काल, काल और कार्य ब्रह्म, काल चक्र और कार्य ब्रह्म,  काल चक्र ही कार्य ब्रह्म का मार्ग है, … महाकाल शब्द का अर्थ, महाकाली शब्द का अर्थ, महाकाल सिद्धि, महाकाली सिद्धि, महाकाल महाकाली योग का साक्षात्कार स्थान, महाकाल महाकाली योग का स्थान, महाकाल महाकाली योग की दो प्रधान दशाएँ, महाकाल महाकाली योग की दो दशाएँ,  …

 

टिप्पणियाँ: भाग 1 …

  • समस्त साधना मार्गों में, यह अध्याय वह है जिससे गया साधक यदि इसके लिए तैयार नहीं होगा, तो या तो उसको जीवन भर पीड़ाएं होती जाएंगी और या वह उस विप्लव को चला जाएगा जिससे उसकी मृत्यु भी हो सकती है I
  • इस अध्याय में जाने के लिए साधक की उन सूक्ष्म नसों-नाड़ियों को बहुत प्रबल ही होना होगा I
  • यदि ऐसा नहीं हुआ तो इसी मार्ग से साधक एक आंतरिक विप्लव को ही चला जाएगा I
  • इस बिंदु को स्मरण में रखकर ही इस अध्याय में जाना I

 

टिप्पणियाँ: भाग 2 … और ऊपर बताए गए बिंदुओं के अतिरिक्त…

  • और यदि वह साधक तान्त्रिक मार्गों का होगा अथवा तंत्र के उस भाग का होगा जिसमें संयममय काममय सम्भोग का आलम्बन लेकर चेतना की गति करवाई जाती है, तो भी साधक को अपना ब्रह्मचर्य स्थापित रखना ही होगा I
  • इसका अर्थ हुआ कि ऐसे संयममय काममय सम्भोग मार्गों में भी वीर्य अथवा रज की ऊर्जा का नाश नहीं होना होगा I यहाँ ऊर्जा की बात हुई है न कि स्थूल वीर्य अथवा रज की I
  • यदि ऐसे संयममय काममय सम्भोग मार्गों का साधक, इस अध्याय में बताए गए बिंदुओं को प्राप्त करेगा, तो वह बिंदु घोर और प्रचण्ड स्वरूप में ही पाए जाएंगे I
  • और ऐसे साधक की कुण्डलिनी शक्ति भी अतिप्रचण्ड ही होगी और वैसी ही होगी जिसमें विद्युत्, अग्नि (अर्थात तेज या प्रकाश), वायु और जल नामक महाभूत भरपूर होंगे I और वह मातृशक्ति स्वरूप कुण्डलिनी अंततः आकाशीय ऊर्जा में ही विलीन होने लगेगी I
  • और ऐसा साधक अपनी पिण्ड रूपी काया में होता हुआ भी, अपनी आंतरिक दशा में ही पञ्च देव का और उनके पञ्च तन्मात्र, पञ्च महाभूत और पञ्च कृत्यों का स्वरूप ही हो जाएगा I
  • यह संयममय काममय सम्भोग मार्ग, पुरुष और स्त्री के योग से ही होता है I लेकिन इसमें न तो वीर्य की ऊर्जा का नाश और न ही रज की ऊर्जा का नाश ही होना चाहिए I
  • लेकिन यह पुरुष और स्त्री नामक भाग तो साधक की काया में ही होते हैं, इसलिए ऐसे मार्गों में साधक को किसी अन्य पुरुष (अथवा स्त्री) की आवश्यकता भी नहीं होती है I इस मार्ग में साधक के भीतर के पुरुष तत्त्व का उसी साधक के भीतर के स्त्री तत्त्व से ही योग होता है, या यह कहूँ कि करवाया जाता है I और इस मार्ग पर साधक जो भी प्राप्त करता है, वह उसका ही होता है न कि किसी और का I इसलिए ऐसे साधकगण वह सब कुछ पाएंगे, जो काल के गर्भ में होगा और किसी भी शास्त्र में ब्रह्म और ब्रह्म रचना से संबद्ध कहा गया होगा I
  • और चाहे साधक इस संयममय काममय सम्भोग से युक्त योगमार्ग पर किसी अन्य पुरुष (अथवा स्त्री) से योग करके जाए, अथवा उस साधक के भीतर के ही पुरुष प्रकृति का योग करके जाए, लेकिन ऐसा मार्ग उन सभी विप्लवों से भरपूर भी होगा, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं करी होगी I
  • इस बिंदु को भी स्मरण में रखकर इस अध्याय में जाना I

 

इसका कारण है कि…

काल ही जीव जगत का गर्भ है I

यह समस्त जीव जगत कालगर्भित ही है I

काल का गंतव्य स्वरूप ही सनातन कहलाता है I

काल के सनातन स्वरूप में ही समस्त जीव जगत बसा है I

यह समस्त ब्रह्म रचना भी उसी काल के समान सनातन ही है I

कल का सदैव चलायमान शक्तिमय प्रकृति स्वरूप ही कालचक्र होता है I

काल का सदैव गतिशील परिवर्तनशील प्रकृत ऊर्जामय स्वरूप ही कालचक्र है I

कालचक्र के प्रभाव के कारण जीव जगत समय समय पर नष्ट होता ही रहा है I

काल के सनातन स्वरूप के कारण जीव जगत नष्ट होता हुआ भी, सनातन ही है I

 

ऐसा होने के कारण…

काल ही ब्रह्म हैं I

कालचक्र ही ब्रह्म शक्ति हैं I

वह ब्रह्म शक्ति ही महाकाली हैं I

काल का गंतव्य स्वरूप ही महाकाल हैं I

काल का प्रकृति शक्ति स्वरूप ही कालचक्र है I

काल का उदय भी हिरण्यगर्भ ब्रह्म से ही हुआ था I

हिरण्यगर्भ का नाता काल के सनातन स्वरूप से ही होता है I

हिरण्यगर्भ ब्रह्म की रचैता अभिव्यक्ति ही कार्य ब्रह्म कहलाई है I

कार्य ब्रह्म ही योगेश्वर, महेश्वर, उकार, योग तंत्र और सृष्टिकर्ता कहलाए हैं I

हिरण्यगर्भ ब्रह्म की कार्यब्रह्म अबभवयक्ति से ही कालचक्र का उदय हुआ था I

इसलिए महाकाल महाकाली योग जो योगतंत्र का अंग ही है, योगेश्वर का मार्ग है I

 

और इसके अतिरिक्त…

प्रकृति ही ब्रह्म शक्ति हैं I

कालचक्र प्रकृति का ही द्योतक है I

काल का चक्र स्वरूप ही महाकाली हैं I

काल का सनातन स्वरूप ही महाकाल हैं I

महाकाल की शक्ति ही महाकाली कहलाती हैं I

महाकाली ही कालचक्र की प्रकृति रूपी शक्ति हैं I

 

इसलिए, …

काल चक्र ही जीव जगत है I

कालचक्र ही ब्रह्मशक्ति प्रकृति है I

जीव जगत कालचक्र में ही बसा हुआ है I

कालचक्र भी सनातन काल में ही बसा हुआ है I

काल चक्र की उदयावस्था में भी कार्य ब्रह्म ही हैं I

सनातन काल के ब्रह्माण्डीय उदय में हिरण्यगर्भ ब्रह्म हैं I

 

इसलिए, …

कालचक्र, सनातन काल का अंग है I

कालचक्र का उदय कार्य ब्रह्म से हुआ है I

कालचक्र ही प्राकृत जीव जगत कहलाया है I

काल के चक्र रूप की शक्ति ही महाकाली हैं I

महाकाली ही जीव जगत की गर्भात्मक शक्ति हैं I

महाकाली ही त्रिकाली हैं, जो कार्य ब्रह्म की पुत्री हैं I

 

और,…

काल का गंतव्य स्वरूप ही सनातन है I

हिरण्यगर्भ ही सनातन काल रूप में अभिव्यक्त हैं I

काल का सनातन स्वरूप ही जीव जगत का गर्भ हुआ है I

सनातन काल का ब्रह्माण्डीय उदय भी हिरण्यगर्भ से हुआ था I

हिरण्यगर्भ ही उस काल का गर्भ है, जिसमें समस्त जीव जगत गर्भित है I

कार्य ब्रह्म ही कालचक्र के ब्रह्मशक्ति रूप के धारक हैं, जो प्रकृति, काल शक्ति हैं I

 

और कुछ बिंदु…

काल शक्ति ही त्रिकाली हैं I

त्रिकाली कार्य ब्रह्म की पुत्री हैं I

काल शक्ति ही कालचक्र कहलाता हैं I

कालचक्र की दिव्यता महाकाली कहलाती हैं I

कालचक्र ही ब्रह्म शक्ति स्वरूप में प्रकृति हुआ है I

काल और कालचक्र का योग ही महाकाल महाकाली योग है I

आगे बढ़ता हूँ…

 

आंतरिक योगमार्ग में…

जिस गर्भ में जीव जगत बसा हुआ है, वह काल है I

जो दिव्यता, शक्ति काल ने धारण करी हुई है, वह काली है I

महाकाल का अर्थ, काल का गंतव्य, सनातन ब्रह्म ही होता है I

महाकाली का अर्थ महाकाल की सनातन दिव्यता, सार्वभौम शक्ति है I

 

और क्यूंकि…

महा कभी दो नहीं होते I

शिखर पर बैठा हुआ महा एक ही होता है I

वेदों में जब महा शब्द कहा जाता है, तो वह शिखर को ही दर्शाता है I

 

इसलिए, …

महाकाल शब्द का अर्थ काल शिखर है, जो अनादि सनातन है I

महाकाली शब्द का अर्थ, सनातन काल की सार्वभौम दिव्यता (शक्ति) ही है I

 

अब महाकाल और महाकाली की योगदशा और उसके मार्ग को बताता हूँ…

जड़ समाधि से माँ महाकाली का साक्षात्कार होता है I

असंप्रज्ञात समाधि से ही भगवान् महाकाल का साक्षात्कार होता है I

महाकाल महाकाली योग, असंप्रज्ञात ब्रह्म और जड़ प्रकृति का योग ही है I

जड़ प्रकृति अर्थात महाकाली भी, असंप्रज्ञात ब्रह्म के परिधान में ही बसी हुई हैं I

 

आगे बढ़ता हूँ…

यह महाकाल महाकाली योग जिन दशाओं को दर्शाता है, अब उनको बताता हूँ…

देवी का देवता से योग I

प्रकृति का भगवान् से योग I

कालशक्ति का काल से योग I

ब्रह्म शक्ति का ब्रह्म से योग I

तुरीय का तुरीयातीत से योग I

यह सब इसलिए है क्यूंकि इसी महाकाली महाकाल योग का आलम्बन लेकर साधक, ऊपर बताए गए किसी भी योग और उस योग के मार्ग से संबद्ध किसी भी दशा में जा सकता है I

 

इस योग में…

काल का गंतव्य जो सनातन है, उसके अनुसार महाकाली महाकाल योग जो दर्शाता है वह यह है…

सनातन का सनातनता से योग I

और क्यूंकि यह योग साधक की काया में ही चलित होता है, इसलिए ऐसा होने के कारण इस योग सिद्धि में साधक अपनी काया के भीतर ही सनातन और उसकी सनातनता के योग को पाएगा I

 

और इसके अतिरिक्त…

काल का जीव जगत स्वरूप जो कालचक्र ही है, उसके अनुसार महाकाली महाकाल योग जो दर्शाता है वह यह है…

जीव जगत के गर्भ का जीव शक्ति और जगत शक्ति से योग I

क्यूंकि यह योग साधक की काया में ही चलित होता है, इसलिए ऐसा होने के कारण इस योग सिद्धि में साधक पिण्ड ब्रह्माण्ड की अद्वैत योगदशा को भी पाएगा I

और उस पिण्ड ब्रह्माण्ड योग में साधक अपनी काया के भीतर ही जीव जगत और उसकी शक्ति के योग का साक्षात्कार भी करेगा I

 

आगे बढ़ता हूँ…

यह महाकाल महाकाली योग…

शैव,शाक्त और वैष्णव मार्गों से संबद्ध है I

अंधकारमय योगदशाओं में यह शिखर का योग ही है I

अंधकारमय और प्रकाशमय दशाओं के योग में भी शिखर है I

 

इस योग में…

काल और कालशक्ति का योग है I

काल के भीतर ही उसकी शक्ति बसी हुई है I

काल अंधकारमय है, और कालशक्ति प्रकाशमय है I

कालशक्ति सर्वसम है, और काल असंप्रज्ञात दशा में है I

काल, सनातन स्वरूप में महाकाल हैं और कालशक्ति, महाकाली हैं I

काल जीव जगत का गर्भ स्वरूप है, और महाकाली जीव जगत की शक्ति I

काल अपने गंतव्य सनातन स्वरूप में आत्मा है, और कालशक्ति, आत्मशक्ति I

आगे बढ़ता हूँ…

इस योग को कई और प्रकार से जाना जा सकता है, जैसे…

भद्र भद्री योग I

सत् सत्ता योग I

ईश्वर ईश्वरी योग I

अहम् अहम्ता योग I

ज्ञान ज्ञानशक्ति योग I

चेतन चेतनशक्ति योग I

समंतभद्र समंतभद्री योग I

शक्तिमान सर्वशक्ति योग I

अस्मि का अस्मिता से योग I

महाशून्य का शून्यता से योग I

क्रियागर्भ का क्रियाशक्ति से योग I

 

इस योग के जीव जगत स्वरूप से…

साधक के शरीर में ही पिण्ड ब्रह्माण्ड योग साक्षात्कार होता है I

 

और इस योग के शिखर स्वरूप से साधक…

आरंभहीन-अन्तहीन ब्रह्म का साक्षात्कार करता है I

आरंभहीन-अन्तहीन ब्रह्म और ब्रह्म शक्ति को प्राप्त होता है I

यदि साधक मुमुक्षु होगा, तो अंततः वह इसी योग से सर्वस्व त्याग भी कर पाएगा I

आगे बढ़ता हूँ…

 

अब इस योग सिद्धि से मुमुक्षु की गति को बताता हूँ I

वह मुमुक्षु आयाम चतुष्टय से अतीत हो जाएगा और इस दशा में वह…

कालचक्र से अतीत होकर, सनातन ब्रह्म को पाएगा I

आकाशचक्र से अतीत होकर, अनंत ब्रह्म को पा जाएगा I

दशाचक्र से अतीत होकर, सर्वव्यापक ब्रह्म को पा जाएगा I

दिशाचक्र से अतीत होकर, सर्वदिशा व्याप्त ब्रह्म को पाएगा I

टिप्पणी: यहां कहे गए दिशा शब्द का अर्थ उत्कर्ष पथ है I

 

और ऐसी सिद्धि के पश्चात वह साधक…

जीव काया में होता हुआ भी जीवातीत होगा I

जगत में बसा होने पर भी, जगतातीत ही रहेगा I

ब्रह्मरचना का भाग होता हुआ भी, रचनातीत ही रहेगा I

 

ऐसा होने के कारण वह साधक…

पिण्ड रूप में होता हुआ भी, पिण्डातीत ही है I

ब्रह्माण्ड में बसा होने पर भी, ब्रह्माण्डातीत ही है I

न देव होगा न ही कुछ और होगा वह सर्वातीत होगा I

 

आगे बढ़ता हूँ…

अब महाकाल महाकाली योग के साक्षात्कार स्थान के बारे में बताता हूँ…

पूर्व के अध्याय में बोधिचित्त का वर्णन करा गया था, और बोधिचित्त को आपो ज्योति, अंतर्लक्ष्य, नित्य वैकुंठ, सत्य कैलाश, चिन्मय नेत्र आदि भी कहा गया था I

उस अंतर्लक्ष्य के चित्र में चौबीस रेखाएं भी दिखाई गई थीं I और यह चौबीस रेखाएं उस नित्य वैकुंठ (या सत्य कैलाश) के मध्य भाग में जो बिंदु होता है, उससे बाहर की ओर निकलती हुई दिखाई गई थी I

यह महाकाल महाकाली योग और इसका साक्षात्कार बोधिचित्त के मध्य के बिंदु के भीतर ही होता है I और क्यूंकि बोधिचित्त का साक्षात्कार स्थान भी भ्रूमध्य से थोड़ा ऊपर की और होता है, इसलिए महाकाली महाकाल योग का स्थान भी यही होता है I

 

ऐसे साक्षात्कार के समय, यदि साधक…

मुमुक्षु होगा तो वह इससे आगे शिवलोक और सदाशिव वामदेव में चला जाएगा I

सिद्ध मार्गों का होगा, तो वह इस साक्षात्कार से बहुत सिद्धियों को प्राप्त करेगा I

 

आगे बढ़ता हूँ…

अब महाकाल महाकाली योग की दो प्रधान दशाएँ बताता हूँ…

  • प्रथम दशा, … 

शमशान काली महाकाल योग, महाकाल श्मशान काली योग, शमशान काली महाकाल योग सिद्धि, महाकाल श्मशान काली योग सिद्धि, शमशान काली महाकाल योग शरीर, शमशान काली महाकाल सिद्ध शरीर, महाकाल शमशान काली सिद्ध शरीर, …

महाकाल शमशान काली योग, महाकाल श्मशान काली योग सिद्धि
महाकाल शमशान काली योग, महाकाल श्मशान काली योग सिद्धि

 

जब साधक की चेतना बोधिचित्त के मध्य के बिंदु में प्रवेश करती है, तब यह प्रथम दशा आती है, जो शमशान काली का महाकाल से योग दर्शाती है I

इस दशा में शमशान काली और महाकाल निराकार स्वरूप में ही होते हैं I

इस दशा में वह शमशान काली अपने पूर्णकाली स्वरूप में महाकाल से योग करती हैं और महाकाल के अन्धकारमय परिधान के भीतर ही उनकी शक्ति रूप में निवास करती हैं I

इस दशा से ही साधक दस महाविद्या में जो माँ धूमावती कहलाई गई हैं, उनका साक्षात्कार करता है I लेकिन यह साक्षात्कार थोड़ा आगे जाकर ही हो पाता है और तब ही होता है जब साधक की चेतना इस साक्षात्कार से आगे जो शिवलोक है, और उससे भी आगे जो सदाशिव का वामदेव मुख है, उसमें ही चली जाती है I

इस साक्षात्कार की अंतिम दशा में माँ शमशान काली, धूम्र वर्ण की होती हैं और महाशमशानों की दिव्यता और शक्ति स्वरूप में होती हैं I

इसका साक्षात्कार का यह भी अर्थ हुआ कि यह साक्षात्कार तब होगा जब साधक उसकी काया के भीतर बसे हुए आंतरिक महाशमशान में जाने का पात्र हुआ होगा I और इसकी सिद्धि भी तब ही प्रकट होगी, जब साधक उसकी काया के भीतर के महाश्मशान में चला गया होगा I

वह आंतरिक महाशमशान भी साधक की काया के भीतर बसी हुई उस काशी नगरी (अर्थात आंतरिक काशी) में ही होता है, जो भ्रूमध्य के क्षेत्र से थोड़ा सा ऊपर की ओर ही होती है I

वैदिक ज्योतिष के अनुसार जो ग्रह शमशान काली का द्योतक होता है, वह केतु है, इसलिए यह केतु सिद्धि भी है I ऐसा होने के कारण केतु नामक ग्रह मोक्ष को ही दर्शाता है I

शमशान काली महाकाल योग सिद्धि, शमशान काली महाकाल योग शरीर
शमशान काली महाकाल योग सिद्धि, शमशान काली महाकाल योग शरीर

 

इस सिद्धि से साधक एक धूम्र वर्ण के शरीर को प्राप्त करता है और यही सिद्ध शरीर साधक के भीतर निवास करती हुई शमशान काली हैं I

और यह सिद्ध शरीर एक विशालकाय अन्धकारमय दशा के भीतर ही बसा हुआ होता है I

ऐसे साधक पर न तंत्र कार्य करेगा, न मंत्र और न ही कोई यंत्र I

यह सिद्धि तंत्रातीत, मंत्रातीत और यंत्रातीत ब्रह्म की ही द्योतक है I

ऐसा योगी अपनी आंतरिक दशा में तंत्रातीत, मंत्रातीत और यंत्रातीत ही होता है I

आगे बढ़ता हूँ…

  • द्वितीय दशा,

महाकाली महाकाल योगदशा, महाकाल महाकाली योगदशा, महाकाली महाकाल योग सिद्धि, महाकाल महाकाली योग सिद्धि, महाकाली महाकाल योग शरीर, महाकाली महाकाल सिद्ध शरीर, महाकाल महाकाली सिद्ध शरीर,

 

महाकाली महाकाल योग सिद्धि, महाकाल महाकाली योग सिद्धि, महाकाली महाकाल सिद्ध शरीर
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ऊपर बताए गए प्रथम भाग की सिद्धि के पश्चात, साधक की काया के भीतर बहुत सारे सिद्ध शरीर प्रकट होते हैं, और प्रकटीकरण के पश्चात, वह सिद्ध शरीर अपने अपने ब्रह्माण्डीय कारणों में लय भी हो जाते हैं I

 

जब ऐसा होता है, तब वह…

सगुण साकार सिद्ध शरीर अपने ब्रह्माण्डीय कारणों के समान निराकार होते हैं I

 

और ऐसी दशा में साधक…

सगुण साकारी स्वरूप में होता हुआ भी, अपनी आंतरिक दशा से निराकार होता है I

 

और जब यह समस्त सिद्ध शरीर अपने-अपने ब्रह्माण्डीय कारणों में लय हो चुके होते हैं, तब ही यह महाकाली महाकाल योग सिद्धि प्राप्त होती है I

और जहाँ यह महाकाली महाकाल सिद्धि, अन्धकारमय योगदशाओं की सिद्धियों में अंतिम सिद्धि स्वरूप ही होती है I इसका अर्थ हुआ कि इस अध्याय में बताया जा रहा योगमार्ग, अन्धकारमय दशाओं का अंतिम योग ही है I

इस योगमार्ग का सिद्ध शरीर एक अंधकारमय दशा में बसा हुआ होता है I यह सिद्ध शरीर भी काले वर्ण का होता है और इसमें वज्रमणि के समान प्रकाश के कई सारे बिंदु होते हैं I

यह सिद्ध शरीर महाशून्य का द्योतक है और महाशून्य सिद्धि को भी दर्शाता है I ऐसा होने के कारण प्रकृति के दृष्टिकोण से यह अंतिम सिद्धि ही है I

 

आगे बढ़ता हूँ…

अब महाकाली महाकाल योग के पश्चात की दशा को बताता हूँ…

  • अन्तःकरण चतुष्टय का लय: अन्तःकरण चतुष्टय अपने कारण में पूर्णतः लय हो जाता है I

परन्तु इस लय से पूर्व अंतःकरण चतुष्टय में केवल तीन भाग ही रह जाते हैं और इन तीन भागों को एक अंधकारमय दशा ने घेरा हुआ होता है I

यह तीन भाग त्रिगुण के होते हैं और इनमें से रजोगुण के भाग के साथ पीले वर्ण के प्रकाश की किरणें भी होती हैं I

इसी दशा के आने के पश्चात, वह अंतःकरण अपने कारण में पूर्णतः लय होता है I और जब यह लय हो जाता है तब साधक जीव जगत से अतीत भी हो जाता है I

और अंततः त्रिगुण भी अपने-अपने कारणों में लय होते हैं, जिससे साधक त्रिगुणातीत ही हो जाता है I

इसके लय के बारे में एक पूर्व के अध्याय, जिसका नाम बोधिचित्त (और सत्य कैलाश, चिन्मय नेत्र आदि) था, उसमें बताया गया था, इसलिए उन्हीं बिंदुओं को यहाँ पुनः नहीं बताऊंगा I

 

 

  • बोधिचित्त का लय: बोधिचित्त भी अपने कारण में लय हो जाता है I

इस लय के समय, साधक के…

चित्त का लय चेतन सिद्धांत में होगा

और बुद्धि का लय ज्ञान सिद्धांत में होगा I

जब यह होगा तो साधक की काया के भीतर के ब्रह्माण्डीय भाग भी अपने-अपने कारणों में स्वतः ही लय होने लगेंगे I

और इस प्रक्रिया के अंत में वह साधक जीव जगत से पूर्णतः अतीत हो जाएगा I यह भी वह कारण है कि इस अध्याय में बताया जा रहा महाकाल महाकाली योग मुक्तिमार्ग ही है I

यह लय प्रक्रिया पूर्ण होने के पश्चात, योगी के बारे में वह ब्रह्माण्ड भी नहीं जान पाएगा और ऐसा तब भी होगा जब योगी उसी ब्रह्माण्ड के भीतर ही अपने कायाधारी स्वरूप में ही निवास कर रहा होगा I

 

ऐसा इसलिए होगा क्यूंकि…

जब साधक के भीतर के ब्रह्माण्डीय भाग अपने अपने कारणों में लय हो जाते हैं, तब साधक जीवित होता हुआ भी, ब्रह्माण्ड के नियंत्रण अथवा दृष्टि में नहीं रहता I

 

इसलिए यह लयमार्ग, महाकाली महाकाल योग से भी आगे की गति का द्योतक होता है और जहाँ उस गति में जो होता है, वह ऐसा ही पाया जाएगा…

जब योगी की काया के भीतर के ब्रह्माण्ड की समस्त दशाएँ अपनेअपने कारणों में लय हो जाती हैं, तब योगी ब्रह्माण्ड से ही स्वतंत्र होकर रह जाता है I

जब योगी का आंतरिक ब्रह्माण्ड उस ब्रह्माण्ड में लय हो जाता है जिसमें योगी की काया बसी होती है, तब योगी काया में निवास करता हुआ भी, स्वतंत्र ही रहता है I

यह स्वतंत्र दशा ही कैवल्य मोक्ष है और ऐसा योगी कैवल्य मुक्त कहलाता है I

जब योगी की काया के भीतर, जीव जगत का जो कुछ भी है, वह अपनेअपने कारणों में लय हो जाएगा, तब योगी के आत्मस्वरूप का प्रकाश भी होगा I

लय प्रक्रिया पूर्ण होने पर योगी की जो दशा होगी, वह जीवनमुक्ति ही कहलाती है I

और उस जीवनमुक्ति का मार्ग भी शून्य ब्रह्म के साक्षात्कार से होकर जाएगा I

 

आगे बढ़ता हूँ…

अब इस योगमार्ग और उसके साक्षात्कार के कुछ और बिंदुओं के बारे में बताता हूँ…

जबतक प्रकृति को उन स्व:प्रकाश (ब्रह्म) का ज्ञान नहीं था, जिसने प्रकृति को भेदा और घेरा भी हुआ था, तबतक प्रकृति शून्य में ही रही थी I

और जब प्रकृति को उस स्व:प्रकाश (ब्रह्म) का ज्ञान हुआ, तब प्रकृति ने उस निर्गुण स्व:प्रकाश से अपने सनातन योग को जाना, जिसका फलस्वरूप शून्य ब्रह्म था I

निर्गुण स्व:प्रकाश को जानकर, प्रकृति ने अपने पूर्ण स्वरूप को जाना I

और इस साक्षात्कार मार्ग में जो मध्यवर्ती दशा आई, वही शून्य ब्रह्म था I

ऐसा ही यहां बताए जा रहे योगमार्ग में साधक के साक्षात्कार में भी होता है I

इसलिए इस योगमार्ग और साक्षात्कारों में भी शून्य ब्रह्म नामक दशा आएगी ही I

इस योगमार्ग की अंतगति में, साधक का आत्मस्वरूप ही स्व:प्रकाश निर्गुण ब्रह्म होगा I

ऊपर दिखाए गए यह महाकाल महाकाली योग शरीर में महाकाली सर्वसम प्रकाश (अर्थात हीरे जैसे प्रकाश) बिंदुओं के समान होती हैं, और यह प्रकाश भी संस्कारिक ही होता है I

 

आगे बढ़ता हूँ…

और इस महाकाली महाकाल योग की अंतिम दशा, शून्य अनंत स्वरूप स्थिति क्या है, अनंत शून्य स्वरूप स्थिति क्या है, शून्य ब्रह्म स्वरूप स्थिति, शून्य ब्रह्म सिद्ध शरीर, शून्य ब्रह्म सिद्धि, शून्य ब्रह्म शरीर इन बिंदुओं को बताता हूँ…
शून्य अनंत स्वरूप स्थिति, अनंत शून्य स्वरूप स्थिति, शून्य ब्रह्म स्वरूप स्थिति
शून्य अनंत स्वरूप स्थिति, अनंत शून्य स्वरूप स्थिति, शून्य ब्रह्म स्वरूप स्थिति, शून्य ब्रह्म सिद्ध शरीर, शून्य ब्रह्म शरीर

 

इस योग की अंतिम दशा में जो सिद्ध शरीर प्रकट होगा, वह महाकाल का ही होगा और उस सिद्ध शरीर के भीतर महाकाली एक सूक्ष्म संस्कारिक प्रकाश रूप में बसी हुई होंगी I यही ऊपर के चित्र में भी दिखाया गया है I यह सिद्ध शरीर शून्य ब्रह्म सिद्धि का भी द्योतक है I

यह शरीर को भेदता हुआ और घेरे हुए भी एक निरंग प्रकाश होता है, जो सदाशिव के ईशान मुख से संबद्ध होता है I इसलिए यहाँ दिखाया गया सिद्ध शरीर अंततः ईशान सदाशिव में ही लय होता है I

इस सिद्ध शरीर का नाता उन कालकृष्ण से भी है, जिनके बारे में एक पर्व के अध्याय में बताया गया था I इस शरीर की प्राप्ति से पूर्व, साधक की चेतना उन रात्रि के समान काले वर्ण के विराट कृष्ण की दाहिनी हथेली पर ही बैठ जाती है I

और जहाँ वह विराट कृष्ण, शून्य अनंत अनंत शून्य नामक दशा के भी द्योतक होते हैं I

 

शून्य ब्रह्म, शून्य अनंत, अनंत शून्य, शून्य अनंत, अनंत शून्य
शून्य ब्रह्म, शून्य अनंत, अनंत शून्य, शून्य अनंत, अनंत शून्य

 

और क्यूंकि यह सिद्ध शरीर उसी शून्य अनंत: अनंत शून्य: का ही द्योतक होता है, इसलिए यह सिद्ध शरीर शून्य अनंत स्वरूप स्थिति का भी द्योतक है I इसी को इस ग्रंथ में शून्य अनंत स्वरूप स्थिति, अनंत शून्य स्वरूप स्थिति, शून्य ब्रह्म स्वरूप स्थिति, शून्य ब्रह्म सिद्ध शरीर, शून्य ब्रह्म सिद्धि, शून्य ब्रह्म शरीर आदि कहा गया है I

महाकाली महाकाल योग में यही अंतिम दशा होती है I और इस ब्रह्माण्ड के समस्त इतिहास में इस सिद्धि के धारक इतना कम रहे हैं, कि उनको एक हस्त की एक ऊँगली के पोर (अऋगुली की पोर) पर भी नहीं गिना जा सकता I

यही सिद्ध शरीर उन शून्य ब्रह्म में लय होता है, जो शून्य अनंत: अनंत शून्य: के वाक्य को दर्शाते हैं और जो श्रीमन नारायण, श्री हरी, भगवान् जगन्नाथ, असंप्रज्ञात ब्रह्म और पूर्ण ब्रह्म भी कहलाए जाते हैं I

जिस जन्म में साधक इस सिद्धि को पाया होगा, उस जन्म के शरीर को त्यागने के पशचात वह साधक न तो चलित ब्रह्माण्ड में मिलेगा, न सर्वसम ब्रह्माण्ड में और न ही जड़ ब्रह्माण्ड अथवा अचलित ब्रह्माण्ड में ही रहेगा I ऐसा साधक तो शून्य की मध्यवर्ती देशों में भी नहीं मिलेगा I

तो इसी बिंदु पर यह अध्याय समाप्त होता है और अब मैं अगले अध्याय पर जाता हूँ जिसका नाम शिवलोक, आदिनाथ होगा I

 

तमसो मा ज्योतिर्गमय I

 

 

लिंक:

ब्रह्मकल्प, Brahma Kalpa

परंपरा, Parampara

ब्रह्म, Brahman

कालचक्र, Kaalchakra

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